April 19, 2024 9:07 PM

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बुजुर्ग महिला ने हाथ से लिखा “कुरान शरीफ” देखिए तस्वीरें

हैदराबाद: किसी भी काम को करने का जुनून हो तो रास्ते में कोई भी चीज रुकावट नहीं बनती हैं, कोई भी व्यक्ति किसी काम में शिद्दत, मेहनत और लगन के साथ कोई काम करता हैं तो कामयाबी जरूर मिलती हैं. सपनों को पूरा करने की कोई सीमा नहीं होती है, बहुत सारे लोग ढलती उम्र के साथ अपने ख्वाब को पूरा नहीं कर पाते हैं. लेकिन आज हम आपको शहर हैदराबाद की एक बुजूर्ग महिला से मिला रहे हैं जिन्होंने ढलती उम्र के साथ कुरान शरीफ को हाथ से लिख कर लोगों को चौंका दिया हैं. उस महिला का नाम फ़ातिमा उन निसा उर्फ अख्तरी बेगम, पति मरहूम जमील अहमद कुरैशी हैं जो हैदराबाद के संतोष नगर की रहने वाली हैं, उनकी उम्र 66 साल हैं, इस उम्र में कलम से उन्होंने कुरान लिख कर दूसरे लोगों, महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं हैं. गौरतलब बात ये है इस उम्र में उन्होंने कुरान शरीफ को बगैर चश्मे के सहारे के लिखी हैं. आवाज द वॉइस से बात करते हुए फातिमा उन निसा ने बताई कि आज से करीब 15 साल पहले कुरान पढ़ रहीं थी तो ख्याल आया कि जब मैं इस कुरान पाक को पढ़ सकती हूं तो फिर लिख क्यों नहीं सकती हूं. इसके बाद हमने कैलीग्राफी के लिए निजाम म्यूजियम में मोहम्मद गफ्फार से संपर्क किया. जिसके बाद हमने वहां अरबी अच्छी तरह से लिखना सीखा .

 कुरान शरीफ को लिखने में कितने समय लगा?

इस बाबत वह बताती हैं कि कुरान शरीफ को लिखने में हमें चार साल का समय लगा. मैंने अप्रैल 2012 में कुरान लिखना शुरु किया, प्रतिदिन 5 से 6 घंटे कुरान लिखती रहीं जिसके बाद अप्रैल 2016 में कुरान के तीस पारे को लिख कर मुकम्मल की. इस वक्त मैं लिखे गए कुरान शरीफ में दूसरी बार वर्तनी को सही कर रही हूं. उसके साथ ही तीस पारे को अलग अलग करने में मशगूल हूं.

अब कैसा महसूस करती हैं फ़ातीमा उन निसा

कुरान शरीफ को बगैर चश्मा लिखने वाली बुजुर्ग महिला इस बारे में बताते हुए कहती हैं कि ये अल्लाह का करम हैं कि उन्होंने हम से इस तरह का काम लिया हैं. मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि कुरान मजीद को हाथ से लिख लूंगी, हर रोज लिखतीं रहीं और आज कुरान शरीफ को पूरा कर ली हूं. अल्लाह को हमसे इस तरह का काम लेना था.

फ़ातिमा उन निसा उर्फ अख्तरी बेगम को घुटने में बीमारी हैं इसलिए वह कुरान शरीफ को लिखते समय एक पैर जमीन पर और दूसरा पैर पलंग पर रखती हैं. इसका इलाज शहर के ही एक डॉक्टर के यहां चल रहा है.

मैं जब भी घर के बाहर लॉन में कुरान लिखने बैठतीं थी तो एक अलग तरह की हवा आती हैं, उसके अंदर खुशबू ही खुशबू होती हैं. कभी सोने के दौरान अच्छी ख्वाब देखती हूं.

इस काम में किसने साथ दिया?

वह आगे बताती हैं कि इस काम में मेरे घर के लोगों, बेटे और बहू ने मदद की हैं. जब मैं कुरान शरीफ लिखती थीं तो हमारे सामने नाश्ता और खाने का इंतजाम कर देती थी. कुरान शरीफ लिखते समय कलम, पेंसिल, रब्बर की जरूरत हैं उसे बाजार से लाने में घर वालों ने मदद की हैं. वक्त वक्त पर हौसला दिया जाता था.

आप लोगों को क्या पैगाम देंगे?

मैं मुस्लिम घराने की महिलाओं को विशेष तौर पर यह कहना चाहती हूं कि आप जब भी कुरान शरीफ पढ़े तो उसे समझने की कोशिश करें. कुरान को दिल से लगाएं. अपने घर में दीनी माहौल पैदा करे तो सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी.